वैश्विक स्वास्थ्य के लिए एक निर्णायक क्षण, जिनीवा में सामने आने वाला है.संयुक्त राष्ट्र. भविष्य की महामारियों को रोकने के प्रयासों में एक केन्द्रीय भूमिका निभा रहा है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य सभा महामारी तैयारी सन्धि के मसौदे को अन्तिम रूप देने के लिए काम कर रही है. यह एक दस्तावेज़ है जो कोविड-19 की भयावह विफलताओं और नाज़ुक जीत से निकला है.सन्धि का पाठ या मसौदा, साझा जानकारी, वैक्सीन और उपचारों तक समान पहुँच व मज़बूत स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों का वादा करता है. ये सभी मुद्दे, उन लोगों के साथ गहराई से जुड़ते हैं जिन्होंने सबसे बुरा दौर देखा है.यूएन न्यूज़ ने, 2020 में, वैश्विक महामारी के चरम पर अनेक गुमनाम नायकों से बात की, जिन्होंने साहस और दृढ़ संकल्प के साथ, असम्भव चुनौतियों का सामना किया, जिनमें डॉक्टर, सामुदायिक कार्यकर्ता, एक पत्रकार, एक युवा स्वयंसेवक और एक स्वदेशी नेता शामिल थे. वे थके हुए, डरे हुए, आशावान और पक्के इरादे वाले थे.वे उस लड़ाई से मिले निशान और ज्ञान को, आज, पाँच साल बाद भी अपने साथ लेकर चलते हैं. हम उनके पास वापस लौटे – और उनके विचार हमें याद दिलाते हैं कि क्या-कुछ दाँव पर लगा है.मार्गारीटा कैस्ट्रिलॉन, बाल रोग विशेषज्ञ, ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना
अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में रहने वाली एक बाल चिकित्सक मार्गारीटा कैस्ट्रीलॉन.
ब्यूनस आयर्स में रहने वाली कोलम्बियाई बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मार्गारीटा कैस्ट्रिलॉन ने 2020 में पाया कि उन्हें अपने सामान्य क्लीनिक के काम से कहीं ज़्यादा काम करना पड़ रहा है.जब coronavirus”>COVID-19 ने अर्जेंटीना को अपनी चपेट में ले लिया, तो उन्होंने आपातकालीन चिकित्सा परिवहन में भी सेवा करने के लिए स्वेच्छा से काम किया, शहर भर के अस्पतालों में वायरस से संक्रमित कई रोगियों को स्थानान्तरित करने के लिए एम्बुलेंस में सवार हुईं.उन्होंने उन लम्बी, थकाऊ कार्य पारियों में से एक ख़त्म करने के बाद, अपने मकान की इमारत में लिफ़्ट पर एक हस्तलिखित वाक्य देखा देखा.वह याद करते हुए बताती हैं कि उस चिन्ह में लिखा था, “मैं 7वीं मंजिल से विक्टोरिया हूँ. अगर आपको किराने का कोई सामान या मदद चाहिए, तो मेरी घंटी बजाएँ.””काम पर इतना कठिन दिन गुज़ारने के बाद उस संकेत ने मेरी आत्मा को छू लिया. इसने मुझे भावुक कर दिया. मैंने सोचा: अच्छे लोग बुरे लोगों से ज़्यादा हैं. सहानुभूति जीत रही थी.”डॉक्टर कैस्ट्रिलॉन कई भूमिकाओं में काम कर रही थीं – क्लीनिक, एम्बुलेंस, विश्वविद्यालय में शिक्षण – और साथ ही अपनी छोटी बेटी की परवरिश भी कर रही थीं.”यह बहुत क्रूर था. मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ और रोना चाहती हूँ. मुझे यक़ीन नहीं है कि अगर यह फिर से हुआ तो मैं इतनी बहादुर हो पाऊँगी. हर दिन मैं घर से डरी हुई निकलती थी.”ब्यूनस आयर्स की गर्मी की यादें, पूरी तरह से सुरक्षात्मक सूट के साथ उसके साथ रहती हैं. “हम बिना टोपी और उचित वेतन के हीरो थे. हम 24 घंटे काम करते थे, बीमार सहकर्मियों की जगह काम करते थे, साथ में खाना या बात नहीं कर पाते थे.”लेकिन इस अनुभव ने उन्हें एक अप्रत्याशित उपहार दिया. “मैंने अपनी बेटी को घर पर पढ़ना, लिखना और गणित करना सिखाया. इसने मुझे एक बेहतर माँ बनाया. मैंने परिवार और सच्ची दोस्ती को पहले से कहीं ज़्यादा महत्व दिया.”उनकी चिकित्सा दिनचर्या भी हमेशा के लिए बदल गई. “मैं अब हर मरीज़ के साथ मास्क पहनती हूँ. यह हम दोनों की सुरक्षा करता है. और अस्पतालों में हाथ स्वच्छता स्टेशन अब स्थाई हैं.”आगामी वैश्विक समझौते पर, वह दृढ़ता के साथ कहती हैं: “हमें सरकारी स्तर पर लोगों के लिए सहयोग और प्यार की ज़रूरत है. हम नरक में जी रहे थे. कुछ सहकर्मी अब भी घबराहट के दौरे से पीड़ित हैं. स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत बनाए रखने के लिए मान्यता और उचित वेतन आवश्यक हैं.”एवगेनी पिनेलिस, गहन देखभाल चिकित्सक, ब्रुकलिन, न्यूयॉर्क
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2020 के वसन्त में जब हमने पहली बार डॉक्टर एवगेनी पिनेलिस से बात की थी, तो वे न्यूयॉर्क शहर की पहली कोविड लहर में के बोझ में दबे हुए थे.उन्होंने याद करते हुए बताया, “हमारा पहला गम्भीर मरीज़ 7 मार्च को आया. महीने के अन्त तक, हमारे पास चालीस से ज़्यादा आईसीयू बिस्तर भर गए थे. आईसीयू नर्सों को सुरक्षित सीमा से भी परे काम पर लगाया गया, एक समय में पाँच गम्भीर रोगियों की देखभाल की गई.सुरक्षात्मक उपकरण इतने कम थे कि उन्होंने अपने धन से चिकित्सा सामग्री ख़रीदी, जबकि स्वयंसेवकों को सुरक्षा उपकरण, ज़रूरतमन्दों को मुहैया कराने के लिए हाथापाई भी करनी पड़ी. इसमें से कुछ सामग्री व उपकरण अप्रमाणित भी थे, मगर “कुछ नहीं होने से, कुछ होना तो बेहतर है.”डॉक्टर पिनेलिस ने पूरे संकट के दौरान अफ़रा-तफ़री के माहौल का वर्णन, पूरी ईमानदारी और सावधानी के साथ सोशल मीडिया पर साझा किया.उन्होंने बताया कि उन्होंने एक दिन सुबह उठकर देखा कि सोशल मीडिया मंचों पर उनके हज़ारों प्रशंसक बन गए थे.पाँच साल बाद, उनकी यादें गम्भीर हैं. “मैं इस बारे में केवल एक नियमित गहन देखभाल चिकित्सक के दृष्टिकोण से ही बात कर सकता हूँ. और अगर मुझे इसे संक्षेप में बताना हो, तो मैं कहूँगा कि मुझे अहसास हुआ कि अगर ज़रूरत पड़ी, तो मैं मानक से कहीं आगे काम करने के लिए तैयार हूँ और एक ख़राब समझी गई बीमारी का सामना करने पर, हर सम्भव प्रयास करूँगा, जिसका इलाज उस समय हम नहीं जानते थे.”उन्होंने कहा कि जनता की प्रतिक्रिया मिली-जुली थी. “एक तरफ़ स्वयंसेवक, समर्थन और एकजुटता थी. लेकिन दूसरी तरफ़, षड्यंत्र या वास्तविकता का खंडन किए जाने के सिद्धान्त थे, बन्द ऑपरेशन थिएटर जैसी तुच्छ चीज़ों के बारे में शिकायतें थीं, और कभी-कभी चिकित्सा पेशेवरों और वैज्ञानिकों के प्रति शत्रुता का भाव भी था.”वे कहते हैं कि महामारी के शुरुआती दिनों में, सकारात्मकता जीतती दिख रही थी. “लेकिन एक या दो महीने के भीतर, नकारात्मकता हावी होने लगी. हम भाग्यशाली थे कि बीमारी बहुत ज़्यादा घातक नहीं थी.”आज की तैयारियों के बारे में, डॉक्टर पिनेलिस सतर्क हैं: “हम न्यूयॉर्क में जितने तैयार थे, उसकी तुलना में कम तैयार होने की कल्पना करना भी कठिन है – इसलिए हाँ, हम बेहतर तरीक़े से तैयार हो सकते हैं और होना भी चाहिए. लेकिन ऐसा लगता है कि सीखे गए सबक़ बिल्कुल वैसे नहीं थे जैसी हमें उम्मीद थी. और मुझे उम्मीद है कि अगली बार ऐसा नहीं होगा, क्योंकि मुझे इस बारे में भरोसा नहीं है कि हम वास्तव में तैयार हैं.”चेन जिंगयू, फेफड़ों के प्रत्यारोपण सर्जन, वूशी, चीन
© Wuxi People’s Hospital
2020 में, वूशी अस्पताल के उपाध्यक्ष और चीन के अग्रणी फेफड़ा प्रत्यारोपण सर्जनों में गिने जाने वाले डॉक्टर चेन जिंग्यू ने गम्भीर रूप से बीमार COVID-19 रोगियों पर दुनिया का पहला फेफड़ा प्रत्यारोपण किया था.उनकी टीम ने असाधारण परिस्थितियों में काम किया, उनके ऑपरेशन थिएटर को एक संक्रामक रोग अस्पताल में पहुँचाया गया और संक्रमण से बचने के लिए अत्यधिक सावधानी बरती गई.डॉक्टर चेन ने उस समय कहा था, “हमें नहीं मालूम था कि रोगग्रस्त फेफड़े को काटने की प्रक्रिया के दौरान उनके वायुमार्ग में कोई वायरस था या नहीं. इसलिए, हमने बहुत सख़्त सावधानियों के साथ ऑपरेशन किया.””हमने इस बारे में बहुत वैज्ञानिक चर्चा की कि हम लोगों की जानें किस तरह बचा सकते हैं, किस तरह अपने स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की रक्षा कर सकते हैं और संक्रमण से पूर्ण मुक्ति के हालात हासिल कर सकते हैं.”डॉक्टर चेन आज कहते हैं कि महामारी सन्धि एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. “महामारी सन्धि वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में एक महत्वपूर्ण मोड़ है.“…यह सन्धि चिकित्सा संसाधनों तक समान पहुँच के लिए क़ानूनी गारंटी प्रदान करती है, राष्ट्रीय एकाधिकार से बचती है, और गम्भीर स्थितियों में रोगियों की देखभाल क्षमताओं के वैश्विक मानकीकरण में सुधार करती है.”डॉक्टर चेन का मानना है कि महामारी के सबक़ का उपयोग एक निष्पक्ष प्रणाली बनाने के लिए किया जाना चाहिए. “उच्च-स्तरीय चिकित्सा तकनीकों तक पहुँच और प्रशिक्षण से विकासशील देशों की श्वसन विफलता जैसी गम्भीर बीमारियों का जवाब देने और मृत्यु दर को कम करने की क्षमता बढ़ेगी.”वे कहते हैं, “हम केवल अन्तरराष्ट्रीय सहयोग और वैज्ञानिक सहमति के माध्यम से ही, वास्तव में महामारी से लड़ने का साहस और आत्मविश्वास प्राप्त कर सकते हैं.”मार्कोस टेरेना, आदिवासी नेता, ब्राज़ील
महामारी ने ब्राज़ील के आदिवासी समुदायों को तबाह कर दिया, जिनमें टेरेना के अपने समुदाय ज़ाने के लोग भी शामिल हैं. “मुझे आज भी वह सुबह याद है, जब हमारे आदिवासी समुदाय में हमने सुना कि हमारे एक चचेरे भाई की अचानक मृत्यु हो गई. उसे खाँसी होने लगी और उसने दम तोड़ दिया. इससे हमारे समुदाय में हम सभी डर गए”.”उसकी मृत्यु के लगभग दो घंटे बाद, हमें मालूम हुआ कि उसकी पत्नी जब उसका शव लेने अस्पताल गई थी तो उसकी भी उसी लक्षण के कारण मृत्यु हो गई थी. हम घबरा गए और मदद की तलाश करने लगे, क्योंकि यह एक ऐसी बीमारी थी जिसे हमारे नेता भी नहीं जानते थे कि स्थिति और मरीज़ों को कैसे सम्भालना है, कैसे ठीक करना है. उन्हें इस बीमारी के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी जो हवा के ज़रिए हमारे पास आई थी.”यह नुक़सान तब व्यक्तिगत हो गया जब उनके भाई जोकि आदिवासी ओलम्पिक खेलों के सृजनकर्ता थे, उनकी भी कोविड-19 से मृत्यु हो गई. “इससे हम भावुक हो गए, हमारे आँसू बह निकले. वह अस्पताल गए और फिर कभी वापस नहीं लौटे.”पीछे मुड़कर देखने पर मार्कोस टेरेना का मानना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. “जब WHO महामारी का मुक़ाबला करने की कार्रवाई के लिए केन्द्र बिन्दु और मध्यस्थ बन गया, तो इसने संयुक्त राष्ट्र को, दुनिया भर की सरकारों के बीच एक बहुत ही ज़िम्मेदार भूमिका निभाने का मौका दिया.”आज, उनका सन्देश ज़रूरी और स्पष्ट है. “हम धन या मुद्राओं के बारे में बात नहीं कर रहे हैं. हम भलाई के बारे में बात कर रहे हैं. हम आदिवासी लोग पृथ्वी की भलाई की ख़ातिर के लिए लड़ते हैं. पृथ्वी हमारी माँ है, और हमारे जीवन का स्रोत है; यह हमें हमारी ब्रह्मांड दृष्टि, हमारी खाद्य सुरक्षा और लोगों के रूप में हमारी गरिमा प्रदान करती है.”जब विश्व के नेता फिर से अपनी बैठक कर रहे हैं, तो वे उनके लिए एक अन्तिम अपील जारी करते हैं: “संयुक्त राष्ट्र को जीवन की ख़ातिर, एक समझौता करना चाहिए, गरिमा के लिए एक समझौता करना चाहिए और एक ऐसा समझौता करना चाहिए जहाँ जीवन सभी के लिए महत्वपूर्ण हो.”निखिल गुप्ता, यूएन युवा स्वयंसेवक, वाराणसी, भारत
© UNDPIndia/Srishti Bhardwaj
जब कोविड-19 ने भारत की आध्यात्मिक नगरी वाराणसी को अपनी गिरफ़्त में ले लिया, तो उत्तर प्रदेश के एक संयुक्त राष्ट्र स्वयंसेवक निखिल गुप्ता ने सबसे अलग-थलग समुदायों की सेवा करने के लिए क़दम बढ़ाया.वे कहते हैं, “महामारी ने सब कुछ बदल दिया. वाराणसी में, कोविड-19 ने 80 हज़ार से अधिक लोगों को संक्रमित किया, और दूरदराज के गाँवों में हज़ारों परिवारों को स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा या यहाँ तक कि सटीक जानकारी तक पहुँच से वंचित कर दिया. लेकिन संकट ने न केवल कमियों को बल्कि धैर्य को भी उजागर किया.”निखिल गुप्ता और उनकी टीम ने रचनात्मक ज़मीनी समाधान शुरू किए. “संयुक्त राष्ट्र के ‘किसी को पीछे नहीं छोड़ें’ के सिद्धान्त से प्रेरित होकर, एक ऐनिमेटेड स्वयंसेवी गाइड बनाया जिसका नाम रखा – गंगा – एक मिलनसार चरित्र जिसकी आवाज़ गर्मजोशी और सरल ज्ञान वाली है. गंगा आशा की किरण बन गई, जिसके माध्यम से नीम के पेड़ों के नीचे साझा मोबाइल स्क्रीन पर देखे गए वीडियो के माध्यम से ग्रामीणों को स्वच्छता, सुरक्षा और टीकाकरण के बारे में शिक्षित किया गया.”उन्होंने विद्या की झोपड़ी भी खोली. “यह एक सामुदायिक कक्षा थी जिसे कबाड़ से बनाया गया था मगर उसके साथ एक उद्देश्य जुड़ा हुआ था. वहाँ मेरी मुलाक़ात राजू से हुई, जो पास की एक झुग्गी में रहने वाला 11 वर्षीय बच्चा था, जो स्कूल नहीं जा पाया था. वह हर दोपहर एक घिसी-पिटी चटाई पर बैठकर आश्चर्य से आँखें फाड़े चाक से अक्षर लिखता था. आज, वह धाराप्रवाह पढ़ता और लिखता है, और शिक्षक बनने का सपना देखता है.”मानवीय क्षणों ने सबसे गहरी छाप छोड़ी. “एक सुदूर गाँव में 90 वर्षीय विधवा अम्मा शान्ति देवी थीं. तालाबन्दी के बाद वे अकेली रह गईं, वे महीनों से बाहर नहीं निकली थीं. हमारे स्वयंसेवकों के ज़रिए, उन्हें नियमित रूप से स्वास्थ्य जाँच, दवाइयाँ मिलती रहीं और बस बात करने के लिए कोई मिल गया.”निखिल गुप्ता, महामारी तैयारी सन्धि की तरफ़ नज़रें टिकाते हुए कहते हैं कि यह केवल तकनीकी या ऊपर से नीचे तक सीमित नहीं होना चाहिए. “इसमें अम्मा और राजू जैसे लोगों की आवाज़ें गूंजनी चाहिए. इसमें स्थानीय ज्ञान, स्वयंसेवी नैटवर्क शामिल होने चाहिए और ज़मीनी स्तर पर समानता सुनिश्चित करनी चाहिए. विश्व नेताओं के लिए मेरा सन्देश? ‘क़ानून मार्गदर्शन कर सकते हैं, लेकिन प्रेम को आगे बढ़कर नेतृत्व करना चाहिए. सिर्फ़ गति में नहीं, बल्कि सेवा करने वाले दिलों में निवेश करें.’”वे आगे कहते हैं: “युवा परिवर्तनकर्ताओं का समर्थन करें. समुदाय द्वारा संचालित कार्रवाई की शक्ति को पहचानें. स्वास्थ्य प्रणालियों को समावेशी बनाएँ. और एक ऐसी दुनिया बनाएँ जहाँ, जब अगला तूफ़ान आए, तो रौशनी कम नहीं हो. क्योंकि हर गाँव में एक निखिल है. और हर निखिल में एक युवा है जो नेतृत्व का इन्तज़ार कर रहा है.”एलेजांद्रा क्रेल, पत्रकार, मैक्सिको सिटी
मैक्सिको की एक पत्ररकार अलैजान्द्रा क्रेल, जिन्होंने कोविड-19 के दौरान दर्दनाक मामलों की साहसिक कवरेज की.
जब महामारी ने मैक्सिको को प्रभावित किया, तो एलेजांद्रा क्रेल केवल संकट की रिपोर्टिंग नहीं कर रही थीं, बल्कि वे ख़तरे की घंटी बजा रही थीं. उनकी जाँच, To Kill a Son, ने उजागर किया कि मैक्सिको में हर दो दिन में 15 साल से कम उम्र के एक बच्चे को जान से मारा जा रहा था – अक्सर घर पर, और अक्सर उनके अपने परिवार के किसी सदस्य द्वारा.वह याद करने की कोशिश करते हुए कहती हैं, “मैंने, कोरोनावायरस की शुरुआत में, बाल अधिकारों और घरेलू हिंसा पर अलग-अलग विशेषज्ञों से बात करनी शुरू की… हम चिन्तित थे क्योंकि हम स्कूलों, खेलों और सामुदायिक केन्द्रों में अपनी आँखें खोने वाले थे. कोविड युग के दौरान बच्चे पहले से कहीं ज़्यादा असुरक्षित थे.”बहुत से लोगों के लिए, घर सुरक्षित आश्रय नहीं था. “उनके घर उनके लिए सबसे ख़तरनाक जगह थे, और उनके परिवार के निकटतम सदस्य आमतौर पर उनके हमलावर होते हैं.”क्रेल कहत हैं कि अब, पाँच साल बाद, हिंसा कम नहीं हुई है. “महामारी के बाद घरेलू हिंसा के मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है.”वह एक ऐसा मामले बारे में बताती हैं जिसे वह भूल नहीं सकतीं. जोसेलीना ज़वाला जोकिएक दादी थीं उन्होंने अपने विकलांग पोते के साथ यौन शोषण होने की रिपोर्ट की. “वह पुलिस के पास गई…बच्चे की गवाही और सबूत के बावजूद, उसके पिता को दोषमुक्त कर दिया गया.“जब लोग किसी तरह का न्याय पाने के लिए अधिकारियों के पास जाते हैं…अधिकारी आमतौर पर पर्याप्त जाँच नहीं करते हैं, और अपराध अनसुलझे रह जाते हैं.”वह कहती हैं कि महामारी ने उनके व्यक्तिगत विश्वासों को भी बदल दिया. “स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है जिसे सुनिश्चित करना हमारे लिए ज़रूरी है.”“जब हम मैक्सिको जैसे देश में रहते हैं, जहाँ हमारे पास अच्छी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली नहीं है, तो महामारी या किसी अन्य बीमारी से बचना बहुत मुश्किल हो सकता है.”वह आगे कहती हैं, “काम दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ नहीं है. परिवार – आपके प्रियजन – असली ख़ज़ाना हैं. हमें उनके साथ अधिक समय बिताने की ज़रूरत है, क्योंकि हम नहीं जानते कि उनके साथ साझा करने के लिए, हमारे पास कितना समय है.”विश्व स्वास्थ्य सभा और महामारी तैयारी सन्धि के सन्दर्भ में वह चेतावनी देती हैं कि वैश्विक प्रतिक्रियाओं को वैक्सीन ख़ुराकों और दवाओं तक पहुँच की हदों से भी आगे जाना चाहिए. “स्वास्थ्य, टीकों और वैक्सीन ख़ुराकों से कहीं अधिक है. इसमें मानसिक औरभावनात्मक स्वास्थ्य भी है.”विश्व नेताओं के लिए उनका अन्तिम सन्देश जितना व्यक्तिगत है, उतना ही राजनैतिक भी है: “हमें ऐसे रास्ते खोलने की ज़रूरत है जो दुनिया के सभी देशों को फ़ायदा पहुँचाएँ.इन मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए क्योंकि महामारी की स्थिति में ये मुद्दे, किसी परिवार के विपत्ति से बचने या नहीं बचने के बीच का अन्तर साबित हो सकते हैं.”