Syria Civil War Report; Bashar al-Assad family | Rebel Forces | सीरिया में आर्मी के हथियार लूटे, सरकारी इमारतें जला रहे: लोग बोले- असद सरकार का गिरना सपने जैसा; भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी

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8 दिसंबर, रविवार को विद्रोही लड़ाकों की फौज सीरिया की राजधानी दमिश्क में घुसी। तभी खबर आई कि राष्ट्रपति बशर अल-असद देश छोड़कर भाग गए हैं। इसी के साथ असद परिवार का 54 साल पुराना राज खत्म हो गया। इसमें 24 साल बशर अल-असद के हैं। 2011 में गृह युद्ध शुरू हो.सरकार गिरते ही जश्न मनाती भीड़, खुशी में फायरिंग करते लड़ाकों और राष्ट्रपति भवन से सामान लूटकर ले जाते लोगों के वीडियो सामने आने लगे। दैनिक भास्कर ने सीरिया के हालात समझने के लिए पोर्ट सिटी लटाकिया में रहने वाले जर्नलिस्ट स्टीवन साहीयोन से बात की। उन्होंने फोन नहीं उठाया, लेकिन जवाब में वॉयस नोट भेजा।स्टीवन ने कहा, ‘मैं वीडियो पर चेहरा नहीं दिखा सकता। हालात बहुत ज्यादा खराब हैं। मैं अभी फैमिली को सेफ करने की जद्दोजहद में लगा हूं। हालात थोड़े बेहतर होंगे, तब आपसे बात करूंगा। कुछ वक्त गुजरने दीजिए, हालात सामान्य हुए और मैं सुरक्षित रहा, तो हम फिर बात करेंगे।’इसके बाद स्टीवन का जवाब नहीं आया। असद सरकार गिरने के 48 घंटे बाद हमने उन्हें फिर से मैसेज किया। वे बात करने के लिए तैयार हो गए, लेकिन कहा कि सवाल भेज दीजिए, मैं वॉयस नोट पर ही जवाब दूंगा।सीरिया की राजधानी दमिश्क में जगह जगह विद्रोही लड़ाके दिख रहे हैं। लोग असद फैमिली से जुड़ी मूर्तियां तोड़ रहे हैं। इमारतों में आग लगा रहे हैं।स्टीवन साहीयोन से जानिए सीरिया का हाल…सवाल: बीते 48 घंटे आपके लिए कैसे रहे हैं, बतौर जर्नलिस्ट और एक आम नागरिक आपने क्या देखा? जवाब: ये सपने की तरह है। सीरिया में तानाशाही चल रही थी। बतौर जर्नलिस्ट हम काम नहीं कर पा रहे थे। खुलकर लिख भी नहीं सकते थे। अब हर कोई खुश दिख रहा है। लोग सड़कों पर आकर खुशी जाहिर कर रहे हैं।असद सरकार गिरने और आर्मी की हार के बाद लोगों ने पुलिस स्टेशन-आर्मी के कैंप में घुसकर हथियार लूट लिए हैं। तख्तापलट के बाद होने वाली झड़पें और आपाधापी जारी है। सरकारी और कुछ निजी इमारतों को नुकसान पहुंचाया गया है। अब विपक्षी ताकतें सीरिया पर कंट्रोल कर रही हैं। हालात बेहतर हो रहे हैं।सवाल: आम लोगों का क्या रुख है, सरकार गिरने पर उनका क्या रिएक्शन है? जवाब: 54 साल से चल रही तानाशाही सरकार ने कई ऐसे काम किए, जिससे लोगों में गुस्सा है। विपक्ष को कुचला गया। लोकतंत्र जैसा यहां कुछ भी नहीं था। अल्पसंख्यकों को धमकियां दी जाती रहीं। अब युवाओं के हाथ से हथियार वापस लिए जा रहे हैं। माइनॉरिटीज में भी जैसे नई जान आ गई है।सवाल: राजनीतिक बदलाव किस तरह हो रहा है, नई सरकार कैसे और कब तक बनेगी? जवाब: प्रधानमंत्री मोहम्मद गाजी ने विद्रोही गुटों के लीडर और हयात तहरीर अल-शाम के चीफ अबू मोहम्मद अल-जुलानी से बात की है। जुलानी ने कहा है कि नई सरकार बनने तक आप काम करते रहें। सभी मंत्री काम कर रहे हैं।सवाल: क्या ये बदलाव इजराइल-गाजा-लेबनान संघर्ष से जुड़ा है? जवाब: गाजा में हमास और लेबनान में हिजबुल्लाह कमजोर हुआ है। लेबनान और ईरान बैकफुट पर हैं। ऐसे में सीरिया के हाथ में भी करने के लिए ज्यादा कुछ बचा नहीं है।सवाल: सीरिया का भविष्य क्या होगा, क्या बशर अल-असद की वापसी हो सकती है? जवाब: बशर अल-असद या उनके परिवार की सीरिया में वापसी की कोई संभावना नहीं है। असद सरकार के दमन के शिकार हुए लोग ऐसा नहीं होने देंगे। असद जिस तरह भागे हैं, उन्होंने न समर्थकों के लिए कुछ कहा, न उनकी सुरक्षा के इंतजाम किए।समर्थकों को पीछे छोड़कर भागने की वजह से असद की बची-खुची साख भी मिट्‌टी में मिल गई है। 15 साल से चल रहे युद्ध की वजह से नौजवान, बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग सभी परेशान हैं। लोग कह रहे हैं कि असद को मुल्क छोड़ना था, तो 2011 में ही छोड़ देना था। हम युद्ध और तबाही से बच जाते।सीरिया के हालात समझने के लिए हमने पूर्व डिप्लोमैट और मिडिल ईस्ट की पॉलिटिक्स के जानकार अनिल वाधवा से बात की। साथ ही JNU में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर राजन कुमार से भी कॉन्टैक्ट किया।सवाल: सीरिया में तख्तापलट को आप कैसे देखते हैं? जवाब: सीरिया की आर्मी इतनी जल्दी पीछे हट जाएगी और देश पर विद्रोही गुटों का कब्जा हो जाएगा, ये किसी ने नहीं सोचा था। आने वाले वक्त में इसका भयानक असर हो सकता है। विद्रोही संगठन कोई एक गुट नहीं है, कई गुटों से मिलकर बना है। इनमें कट्टरपंथी इस्लामी जिहादी गुट हैं। ये ISIS और अल कायदा से जुड़े हैं।असद के खिलाफ लंबे समय से प्रदर्शन चल रहे थे। उनके हटने से सीरिया के हालात और खराब होंगे। कट्टरपंथियों का दबदबा बढ़ गया है। एक तरह से सीरिया टूट रहा है। आने वाले दिनों में कुछ इलाकों पर इजराइल कब्जा कर सकता है।तुर्किये ने अपनी सीमा से सटे एरिया पर कब्जा कर लिया है। कुर्द इलाके में कुर्दिश फोर्स का कंट्रोल है। उन्हें अमेरिका का सपोर्ट है। असद के समर्थक समुद्री सीमा से लगे इलाकों में एक्टिव हैं। उन्हें एकजुट रखना मुश्किल है। सेना को हराने वाले गुट ज्यादा घातक हो सकते हैं।मुझे लगता है कि आने वाले दिनों में पूरे पश्चिम एशिया में अस्थिरता बढ़ सकती हैं। सीरिया की तुलना अफगानिस्तान से हो सकती है। तालिबान ने अफगानिस्तान में वापसी की, उसी तरह सीरिया में कट्टरपंथियों का राज आने वाला है।सवाल: सीरिया में इजराइल का भी कोई रोल दिख रहा है? जवाब: सीरिया के विद्रोही गुटों से इजराइल की अच्छी नहीं बनती है। उनसे इजराइल को कोई फायदा नहीं होने वाला। वो खुश इसलिए है क्योंकि असद सरकार जाने से सीरिया में ईरान की स्थिति कमजोर होगी। हिजबुल्लाह भी कमजोर होगा।सवाल: भारत पर क्या असर होगा? जवाब: पश्चिम एशिया में हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। हमारे लोग वहां काम करने जाते हैं। भारत ने कहा है कि लोग सीरिया न जाएं। वहां काम कर रहे लोग वापस आ जाएं। ईरान कमजोर होता है, तो तुर्किये की स्थिति मजबूत होगी। भारत के उससे अच्छे रिश्ते नहीं है। सीरिया में बदलाव का असर भारत समेत दूसरे देशों पर भी होगा। भारत के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।सवाल: कुर्दिश फोर्स भी लड़ाई का हिस्सा है, उनकी लड़ाई को आप कैसे देखते हैं? जवाब: कुर्दिश लड़ाकों की जंग तुर्किये के साथ है। कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी फ्री स्टेट की मांग करती है। अमेरिका को सीरिया की सरकार के खिलाफ लड़ना था, तब उसने कुर्दिश लड़ाकों को सपोर्ट किया। वे दोनों तरफ से फंसते दिख रहे हैं। एक तरफ तुर्किये उन पर अटैक करेगा, दूसरी तरफ सीरिया के लोग उन्हें पसंद नहीं करते।अब अनिल वाधवा की बात…सवाल: सीरिया में विद्रोही गुट इतने कम वक्त में कैसे जीत गए? जवाब: सीरिया की सेना इतनी लंबी लड़ाई के बाद कभी उबर नहीं पाई। वो इतनी सक्षम नहीं थी कि हमा, होम्स और अलेप्पो जैसे बड़े शहरों को विद्रोहियों से वापस ले पाए। इजराइल की बमबारी ने सीरियाई सेना की लॉजिस्टिक और हथियारों से जुड़ी क्षमताओं को कमजोर कर दिया।लेबनान पर इजराइली हमले और हिजबुल्लाह लीडर हसन नसरल्लाह की मौत ने साउथ लेबनान में हिजबुल्लाह को कमजोर कर दिया है। इसलिए वो सीरियाई सरकार की मदद कर पाने की स्थिति में नहीं था। इजराइल ने सीरिया में ईरान के सप्लाई डिपो और मिलिट्री फैसिलिटी पर हमले किए हैं। इससे वो असद सरकार की मदद नहीं कर पाया।हिजबुल्लाह के कमजोर होने से रीजन में ईरान की स्थिति खराब हुई है। 2017 में बने हयात तहरीर अल शाम ने तुर्किये से लेकर उइगरों तक, बड़ी संख्या में अल कायदा से प्रभावित लड़ाकों को इकट्ठा किया। बीते एक दशक में अपनी सेना तैयार की। उसे तुर्किये से मदद मिली है, लेकिन गुप्त रूप से इजराइल ने भी उसका सपोर्ट किया है।सवाल: आगे सीरिया में क्या हो सकता है? जवाब: बहुत ज्यादा अशांति होगी। इसकी वजह ISIS और नॉर्थ में कुर्दिश ग्रुप होंगे। तुर्की के सपोर्ट वाले गुट पहले से कुर्द फोर्स पीपुल्स डिफेंस यूनिट्स और कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी के साथ लड़ रहे हैं।अमेरिकी सेना पूर्वी सीरिया में ISIS के खिलाफ लड़ रही है। इजराइल ने गोलान बफर जोन पर कब्जा कर लिया है। तुर्किये और अमेरिका के बीच इस बात को लेकर टेंशन रहेगी कि सीरिया की नई सरकार को क्या करना चाहिए और क्या नहीं।सवाल: मिडिल ईस्ट के बाकी देशों, खासतौर से इजराइल का इसमें क्या रोल है? जवाब: सीरिया का जियापॉलिटिकल महत्व बहुत ज्यादा है। वो वेस्ट एशिया में ईरान का इकलौता सहयोगी देश है। सीरिया ईरान और हिजबुल्लाह के बीच अहम कड़ी है। सीरिया में रूस का तार्तुस नेवल बेस है। ये सोवियत रीजन के बाहर रूस का इकलौता नेवल बेस है। ब्लैक सी से मेडिटेरियन सी तक सेना भेजने में इस नेवल बेस का बड़ा रोल है।2011 में गृह युद्ध छिड़ा, तब सीरिया में सभी तरह के खिलाड़ी मौजूद थे। तुर्किये ने फ्री सीरियन आर्मी का सपोर्ट किया। अल-कायदा ने अपने गुट तैयार किए। उसी ने अब दमिश्क पर कब्जा किया है। सऊदी अरब और अमीरात के अपने प्रॉक्सी थे। साउथ में जॉर्डन ने अपने मिलिशिया को बढ़ावा देने के लिए अमेरिकी एजेंसी CIA के साथ काम किया।2015 में रूस ने सीरिया में एंट्री की। ईरान शिया मिलिशिया भेज रहा था। हिजबुल्लाह ने हजारों लड़ाके भेजे थे। रूसी दखल ने गृह युद्ध का नतीजा पलटने में अहम भूमिका निभाई थी। 2017 में डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने माना था कि CIA का सीरिया में सीक्रेट मिशन था और इसे बंद कर दिया है।अल-कायदा से जुड़े रहे जुलानी ने इदलिब में सरकार बनाई। असद इदलिब पर हमला करना चाहते थे, लेकिन रूस तैयार नहीं था। शायद पुतिन ने सोचा कि तुर्किये के राष्ट्रपति एर्दोगन के साथ समझौते के जरिए सीरिया में संघर्ष रोका सकता है।जुलानी ने तुर्की के सपोर्ट से देश के अंदर अपना स्टेट बना लिया। इदलिब की करंसी तुर्किये की लीरा है। तुर्किये इदलिब में बिजली सप्लाई करता था, कारोबार करता था। हालात उनके मुताबिक बने, तो जुलानी ने तुर्किये से हरी झंडी मिलने पर हमला शुरू कर दिया। सीरियाई सैनिक बिना लड़े ही टूट गए।असद की बाथ पार्टी का शासन खत्म हो गया है। सीरिया में सेक्युलरिज्म मर चुका है। जुलानी इस्लामिक राज्य बनाएंगे। अमेरिका आखिर में जुलानी और उनके संगठन से आतंकवाद का टैग हटा देगा। जुलानी ईरान के साथ संबंध तोड़ देंगे और ईरान-हिजबुल्लाह दोनों और कमजोर हो जाएंगे।यह देखना होगा कि क्या जुलानी रूस से आर्मी बेस बंद करने और चले जाने के लिए कहेंगे। ऐसा होता है, तो रूस के लिए बड़ा झटका होगा। दमिश्क पर जिहादियों का कब्जा शायद 2003 के इराक युद्ध के बाद पश्चिम एशिया में सबसे महत्वपूर्ण घटना है। इसका असर दशकों तक महसूस होगा।विद्रोही लड़ाके सीरिया का झंडा लेकर सड़कों पर जश्न मना रहे हैं। इसमें आम लोग भी उनके साथ हैं।सवाल: सीरिया में विद्रोही गुटों की सरकार बन पाएगी? जवाब: इस बारे में बात करना जल्दबाजी होगी कि आने वाले दिनों में सीरिया में स्थिर सरकार बनेगी या नहीं। बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि कतर में रूस, कतर और तुर्किये के बीच बैठक का नतीजा क्या होता है।सवाल: सीरिया में हुए बदलाव का भारत पर क्या असर होगा? जवाब: भारत से दखल के लिए अपील की गई है। भारत की क्षमताएं सीमित हैं। हम ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन में सपोर्ट खो देंगे, जो कश्मीर मुद्दे पर हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा है। नई सरकार तुर्किये और कतर के करीब होगी और जाहिर तौर पर सुन्नी एजेंडे को सपोर्ट करेगी। भारत अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में है।एक्सपर्ट बोले- असद की सेना ने कुछ नहीं किया, ये हैरान करने वाला मिडिल ईस्ट के जानकार और ORF फेलो कबीर तनेजा कहते हैं कि गाजा, लेबनान और यूक्रेन में लड़ाई शुरू होने के बाद सभी का ध्यान सीरिया से हट गया था। इसी का फायदा हयात तहरीर अल शाम ने उठाया। ज्यादा हैरान करने वाली बात असद की सेना ने कुछ नहीं किया। हो सकता है कि असद के एडवाइजर्स ने उन्हें सही जानकारी नहीं दी। हो सकता है कि अब सीरिया में अंतरिम सरकार बनाई जाए।ईरान और रूस ने असद का बचाकर रखा था। उनके लिए अब चुनौती बढ़ गई है। ईरान और रूस दोनों लड़ाइयों में उलझे हैं। उनकी इतनी क्षमता नहीं थी कि असद को बचा पाएं।13 साल गृह युद्ध, बशर अल-असद की सरकार गिरने की कहानी राष्ट्रपति बशर अल-असद के विरोध की शुरुआत 15 मार्च, 2011 में हुई थी। इससे तीन महीने पहले 17 दिसंबर, 2010 में ट्यूनीशिया में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए। लोगों के विरोध के बाद राष्ट्रपति जीन अल-अबिदीन बेन अली को देश छोड़कर भागना पड़ा। इसे जैस्मिन क्रांति कहा गया।यहीं से अरब स्प्रिंग की शुरुआत हुई। मिस्र, यमन और लीबिया में भी लोग सरकार के खिलाफ खड़े हो गए। मिस्र में राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने पद छोड़कर सत्ता सेना के हवाले कर दी। वे 1981 से राष्ट्रपति पद पर थे।इसी तरह के प्रदर्शन सीरिया में भी शुरू हुए। इन्हें रोकने के लिए राष्ट्रपति बशर अल-असद ने सेना उतार दी। इसी बीच हथियारबंद संगठनों ने असद सरकार के खिलाफ जंग छेड़ दी। धीरे-धीरे इसमें रूस, तुर्किये, ईरान, लेबनान और अमेरिका शामिल हो गए।27 नवंबर, 2024 को विद्रोही गुट हयात तहरीर अल शाम ने असद सरकार के खिलाफ जंग शुरू कर दी। इस संगठन ने 2020 में सेना के साथ सीजफायर पर समझौता किया था। 1 दिसंबर को विद्रोहियों ने सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर कब्जा कर लिया।गृह युद्ध की वजह से भागे लोग सीरिया लौट रहे बशर अल असद की सत्ता जाने के बाद गृह युद्ध की वजह से सीरिया से भागे लोग देश लौटने लगे हैं। सीरिया-लेबनान बॉर्डर पर मासना चेक पोस्ट पर लंबी लाइनें लगी हैं। ये चेकपोस्ट राजधानी दमिश्क से 50 किमी दूर है। जॉर्डन से भी लोगों ने लौटना शुरू कर दिया है।यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी के मुताबिक, पड़ोसी देशो में सबसे ज्यादा तुर्किये में लगभग 3.5 लाख सीरियाई शरणार्थी हैं। जर्मनी में 8.5 लाख से ज्यादा शरणार्थी हैं। इस बीच भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हम सीरिया की स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। दमिश्क में दूतावास के अफसर भारतीयों के कॉन्टैक्ट में है।असद रूस में, राष्ट्रपति पुतिन ने दी शरण सीरिया से भागे बशर अल-असद को रूस ने अपने यहां शरण दी है। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने मीडिया को बताया कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने निजी तौर पर असद को शरण देने का फैसला लिया है। असद कहां हैं, इस बारे में पेसकोव ने कुछ नहीं बताया।असद सरकार का गिरना रूस के लिए बड़ा झटका है। 2015 में असद सरकार खतरे में थी, तब रूस ने मदद के लिए सैनिक भेजे थे। इसके दो साल बाद 2017 में रूसी राष्ट्रपति पुतिन सीरिया के हेमिम एयरबेस पर गए थे। सीरिया ने रूस को हेमिम एयरबेस और तार्तुस का नेवलबेस 49 साल की लीज पर दिया है।इजराइल ने सीरिया पर रॉकेट दागे, केमिकल वेपंस साइट टारगेट सीरिया में तख्तापलट के बाद सोमवार को इजराइल ने सीरिया पर रॉकेट दागे हैं। इजराइल ने केमिकल वेपंस साइट को टारगेट बनाया ताकि ये हथियार, मिसाइलें और रॉकेट आतंकियों के हाथ न लगें। विदेश मंत्री गिदोन सार ने कहा कि हमारी सेना ने सीरिया में बफर जोन पर अस्थायी तौर पर कब्जा कर लिया है। 1974 के बाद ये पहला मौका है जब इजराइली सेना सीरिया में घुसी है।……………………………..सीरिया में तख्तापलट से जुड़ी ये खबरें भी पढ़िए 1. डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़ जिहादी बना जुलानी, अल कायदा को धोखा देकर असद की हुकूमत खत्म की11 दिन में असद को सत्ता से बेदखल करने के पीछे 42 साल का सुन्नी नेता अबू मोहम्मद अल-जुलानी है। वो ISIS बनाने वाले अबू बकर अल बगदादी का लेफ्टिनेंट रह चुका है। 2016 में जुलानी ने अल कायदा से अलग होने का ऐलान कर सबको चौंका दिया। 2018 में अमेरिका ने अल-जुलानी के सिर पर 10 मिलियन डॉलर (84 करोड़ रुपए) का इनाम रखा था। पढ़ें पूरी खबर…2. सीरिया में हफ्तेभर में तख्तापलट कैसे हुआ, राष्ट्रपति असद कहां भागे, आगे क्या होगा27 नवंबर को सीरिया में इस्लामी विद्रोहियों और सीरियाई सेना के बीच झड़पें शुरू हुईं। धीरे-धीरे विद्रोही गुटों ने हमला तेज किया। पिछले एक हफ्ते में विद्रोही गुट ने सीरिया की राजधानी दमिश्क समेत 5 बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया। इनमें अलेप्पो, हमा, होम्स और दारा शामिल हैं। पढ़ें पूरी खबर…

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